राम मंदिर का इतिहास क्या है और इसकी स्थापना कैसे हुई
यदि हम इतिहासकारो की माने तो अयोध्या प्राचीन काल में कौशल प्रदेश की राजधानी अवध और बौद्धकाल में साकेत से जानी जाती थी और इसको मूल रूप से मंदिरो का शहर कहा जाता था, लेकिन यदि हम इनकी साइट्स को देखते है तो आज भी यहाँ पर हिन्दू बौद्ध और जैन धर्म से जुड़ी चीजों की खोज होती रहती है, जैन धर्म की मान्यता के अनुसार इस स्थान पर आदिनाथ सहित ५ अन्य तीर्थकरो का जन्म हुआ था और बौद्ध धर्म की माने तो यहाँ पर भगवान् बुध ने कुछ माह तक निवास किया था।
यदि हम ग्रंथो की माने तो अयोध्या की भगवान् राम के पूर्वज विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु ने की थी और इन सभी राजाओ को सूर्यवंशी कहा जाता था लेकिन इन नगरों में इनका शासन महाभारत काल तक चला और यही पर भगवान् श्री राम का जन्म हुआ था जो की राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे , महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में अयोध्या की तुलना देवलोक से की गयी है और इसके अंदर अनेको सम्पति थी धन धन्य से समृद्ध अयोध्या नगरी अपने आप में ही परिपूर्ण थी और इसकी सोभा देखने को बनती थी , इसके अंदर गगन चुम्बी इमारते थी और इसकी छटा अतुलनीय थी।
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कहा जाता है की जब श्री राम ने जल समाधि ली थी तब कुछ समय के लिए अयोध्या उजाड़ सी हो गयी थी लेकिन आश्चर्य की बात तो यह थी की उनकी जन्म भूमि पर बना महल वैसे का वैसा ही था उसके बाद श्री राम जी के पूत कुश ने राजधानी अयोध्या को पुनः निर्माण कराया और आगे 44 पीढ़ीओ तक इसको सोभा बानी रही इसके अंतिम राजा महाराज बृहद्वल थे। इनकी मृत्यु महाभारत काल के दौरान अभिमन्यु के हाथो हुई थी और महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजाड़ हो गयी लेकिन भगवान् श्री राम का अस्तित्व फिर भी बना रहा।
राम मंदिर का इतिहास क्या है
आज से लगभग १०० वर्ष पहले उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य शिकार के दौरान अयोध्या पहुंच गए थे और थकान होने के कारण उन्होंने सरयू नदी के किनारे एक आम के वृक्ष के निचे अपनी सेना के साथ विश्राम करने लगे , उस समय यहाँ पर कोई भी वसावट नहीं थी और इस भूमि पर विक्रमादित्य को कुछ चमत्कार दिखाई देने लगे और उन्होंने इस जगह की खोज आरम्भ करी।
आसपास के योगी और संतो से उन्हें पता चला की यह श्री राम जी की जन्म भूमि अवध है और फिर सम्राट ने इस जगह पर भव्य मंदिर के साथ साथ जल कूप, सरोवर और महल इत्यादि भी बनवाये कहा जाता है की उन्होंने काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तम्भों पर एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था।
राजा विक्रमादित्य के बाद समय समय पर अन्य राजाओ ने इस मंदिर की देख रेख करी जिसमे से एक शुंग वंश भी था उनके द्वारा दो अश्वमेघ यज्ञ भी करवाए गए थे कुछ अभिलेखों से ये ज्ञात हुआ की गुप्तवंशिया चन्द्रगुप्त मौर्य ने काफी समय तक अयोध्या पर राज किया।इसके बाद ६०० ईशा पूर्व पहले अयोध्या व्यापार का एक बहुत बड़ा केंद्र था और बहुत से व्यापारी वहा पर आया करते थे।
इस जगह को अंतराष्ट्रीय पहचान ५वी शताब्दी में मिली जब यहाँ पर बौद्ध केंद्र की स्थापना हुई उसके बाद ११ शताब्दी में कनौज के राजा जयचंद ने इस मंदिर में से राजा विक्रादित्य का नाम हटा के अपना नाम लिख दिया, पानीपत के युद्ध के दौरान जयचंद का अंत हुआ और भारत के अंदर विदेशी आक्रांताओ का आक्रमण बढ़ गया और लूटपाट के साथ साथ कई पुजारिओं की हत्या होने लगी लेकिन १४ शताब्दी तक वह राम मंदिर को तोड़ने में सफल नहीं हो पाए थे।
Conclusion:-
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